NOT KNOWN DETAILS ABOUT SHIV CHAISA

Not known Details About Shiv chaisa

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अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥ 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

अर्थ: हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से कांपने लगे (पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन से निकला यह विष इतना खतरनाक था कि उसकी एक बूंद भी ब्रह्मांड के लिए विनाशकारी थी) आपने ही सब पर मेहर बरसाते हुए इस विष को अपने कंठ में धारण किया जिससे आपका नाम नीलकंठ हुआ।

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥ जय जय जय अनन्त अविनाशी ।

शनिदेव मैं सुमिरौं तोही। विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही॥ तुम्हरो नाम अनेक बखानौं। क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं॥

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ आप जलंधर असुर संहारा ।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥ जन्म जन्म के पाप नसावे ।

पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

लै त्रिशूल शत्रुन को Shiv chaisa मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥

O Lord, the beloved daughter of Maina in your still left adds for your splendid visual appeal. O Wearer with the lion's pores and skin, the trishul in Your hand destroys all enemies.

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा more info सब के घटवासी॥

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